हाइब्रिड बीजों के उत्पादन में एफपीओ को तकनीकी सहयोग देगा कृषि विश्वविद्यालय
जबलपुर 15 जनवरी- मध्यप्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड के अंतर्गत कृषि अनुसंधान एवं अधोसंरचना विकास निधि से स्वीकृत परियोजना के तहत उद्यानिकी फसल के हाइब्रिड बीजों के उत्पादन के लिये सोमवार को जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय व कृषक उत्पादक समूह के बीच एमओयू साईन किया गया। जिस पर कृषि विश्वविद्यालय की तरफ से संचालक अनुंसधान सेवायें डॉ जी के कौतू व मैकलसुता कृषक उत्पादक समूह से निदेशक व सीईओ राघवेंद्र सिंह पटैल ने हस्ताक्षर किये।
कृषि विश्वविद्यालय से हुये एमओयू के बारे में जानकारी देते हुये श्री पटैल ने बताया कि मध्यप्रदेश सरकार के मध्यप्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड के द्वारा जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के साथ मिलकर उद्यानिकी फसलों के हाइब्रिड बीज किसानों को सस्ते दामों पर उपलब्ध कराने की मंशा से कार्य किया जा रहा है। जिसके लिये विश्वविद्यालय के अनुसंधान विभाग के साथ करार हुआ। इस एमओयू के तहत विश्वविद्यालय मेकलसुता कृषक उत्पादक समूह व उसके किसानों को ने केवल बीज उत्पादन के लिये उच्च गुणवत्ता के पैतृक बीज उपलब्ध करायेगा बल्कि किसानों को हाइब्रिड बीज तैयार करने की तकनीकि का पूरा प्रशिक्षण भी देगा। जिससे विश्वविद्यालय के समान ही मेकलसुता कृषक उत्पादक समूह के किसान स्वंय उद्यानिकी फसलों के बीज अपने खेतों में तैयार कर सकेंगें। इस अवसर पर जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के डॉ जी के कौतू, संचालक अनुसंधान सेवायें, डॉ जे पी लखानी सहसंचालक, अनुसंधान सेवायें, डॉ अखिलेश तिवारी प्राध्यापक उद्यान विभाग, मैकलसुता कृषक उत्पादक समूह से निदेशक व सीईओ राघवेंद्र सिंह पटैल, भरत पटैल, पियूष श्रीवास्तव की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
उद्यानिकी बीज उत्पादन से आत्मनिर्भर बनेंगे कृषक उत्पादक समूह
किसानों को उद्यानिकी फसलों के गुणवत्ता पूर्ण बीज न मिलने के कारण कई बार सारी मेहनत बेकार हो जाती है। कुछ कंपनियों के बीज इतने महंगे है कि वे आम किसानों की पंहुच से बहुत दूर है। मध्यप्रदेश सरकार विश्वविद्यालय के साथ मिलकर कृषक उत्पादक समूहों के साथ अनुबंध कर रही है। जिससे उन समूहों में शामिल किसानों को पैतृक बीज व तकनीकी सहयोग कर उनसे हाइब्रिड बीजों का उत्पादन कराया जा सके। बीज उत्पादन करने के बाद कृषक उत्पादक समूह को यह अधिकार होगा कि वह उत्पादित हाइब्रिड बीजों का मूल्य स्वंय तय कर सके और बाजार में स्वंय बेेंच सके। जिससे कृषक उत्पादक समूह आत्मनिर्भर बन सकेगा और किसानों को घटिया बीजों की समस्या से निजात मिल जायेगी।